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गुरु रविदास उन लोगों में से एक थे जिन्होंने तर्क दिया कि सभी के पास समान मानवाधिकार होने चाहिए। संत रविदास जी ने समाज में व्याप्त भेदभाव से उठकर कार्य करने का प्रयत्न किया। उन्होंने मध्यकाल में ब्राह्मणवाद को चुनौती दी थी। वह कहते थे कि कोई व्यक्ति जन्म के आधार पर श्रेष्ठ नहीं होता बल्कि वह अपने कर्मों से पूज्यनीय बनता है। उन्होंने अपने दोहे और कविताओं के माध्यम से समाज में समानता के बारे में जागरूकता लाने का प्रयास किया.

गुरु रविदास जयंती कब है?
गुरु रविदास जयंती 2022 में बुधवार, 16 फरवरी, 2022 को मनाई जा रही है. यह संत गुरु रविदास की 645वीं जयंती है। यह माघ मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। पूर्णिमा तिथि 15 फरवरी को रात 09 बजकर 16 मिनट से शुरू होकर 16 फरवरी 2022 को रात 01 बजकर 25 मिनट पर समाप्त हो रही है।
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गुरु रविदास जयंती का इतिहास

गुरु रविदास का जन्म 14 वीं शताब्दी के अंत में भारत के उत्तर प्रदेश के सीर गोवर्धनपुर गाँव में हुआ था। उनका जन्म एक निम्न जाति के परिवार में हुआ था जिन्हें अछूत माना जाता था। इनका नाम रैदास भी माना जाता है। आगे बताये गए कारणों से वो एक महान संत बने, व उनके सम्मान में हर साल गुरु रविदास जयंती मनाई जाती है.
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संत, कवि और भगवान भक्त
गुरु रविदास भक्ति आंदोलन में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बने और उन्होंने आध्यात्मिकता की शिक्षा दी। उनके भक्ति गीतों और छंदों ने भक्ति आंदोलन पर स्थायी प्रभाव डाला.
गुरु रविदास को रैदास, रोहिदास और रूहिदास के नाम से भी जाना जाता है। वह कबीर जी के समकालीन थे, और कबीर जी के साथ आध्यात्मिकता पर उनकी कई बातचीत हुई है।

वे संत, कवि और भगवान भक्त थे। उनका “भक्ति आन्दोलन”, जो की हिन्दू धर्म का एक “धार्मिक भक्तिपूर्ण” आन्दोलन था और जिसने बाद में नए सिख धर्म का रूप लिया था, पर बहुत गहरा प्रभाव था।
उनके 41 भक्ति गीतों और कविताओं को सिख धर्मग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया गया है। संत रविदास जी ने ईश्वर और दिव्य ज्ञान की प्राप्ति की। इनकी रचना बेहद प्रमुख हैं। आज भी भजन-कीर्तन के समय रैदास जी की रचना को गाया जाता है।
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कहा जाता है कि मीरा बाई, गुरु रविदास को अपना आध्यात्मिक गुरु मानती थीं।. मीरा ने भी अपने पद्य और दोहों में उन्हें अपना गुरु मानने का जिक्र किया है.
रविदासियों का मानना है कि गुरु रविदास को अन्य गुरुओं की तरह ही एक संत के रूप में माना जाना चाहिए। उनकी शिक्षाओं का अध्ययन सिख गुरुओं द्वारा किया जाता था।
छूआछूत और सामाजिक कुप्रथाओं के विरोधी
संत रविदास भक्ति काल के निर्गुण परंपरा के भक्त कवि थे. वह सामाजिक कुप्रथाओं और कुरीतियों के खिलाफ आजीवन लड़ते रहे थे. सामाजिक बदलावों के लिए उन्होंने अपन दौर में कई साहसिक प्रयोग भी किए थे जिसकी वजह से उनका व्यक्तित्व आज भी बेहद लोकप्रिय है. उन्होंने छूआछूत जैसी कुप्रथाओं का पुरजोर विरोध किया.

बेगमपुरा नाम से बसाया आदर्श शहर
संत रविदास ने अपनी कविताओं में काल्पनिक शहर बेगमपुरा का बार-बार जिक्र किया है. बेगमपुरा यानी एक ऐसा शहर जहां कोई गम, दुख, तकलीफ न हो. इस शहर के लिए उनकी कल्पना थी कि यह मानवीयता और इंसानियत से भरा शहर होगा. ऐसा शहर जिसमें जात-पात, धर्म, ऊंच-नीच के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता हो. जहां लोग प्रेम और करुणा से रहते हों.
गुरु रविदास जयंती कैसे मनाई जाती है?
गुरु रविदास जन्मदिन पर उनकी बड़ी तस्वीर लेकर सड़कों पर निकलते हैं, खासकर सीर गोवर्धनपुर में, जो कई भक्तों के लिए केंद्र बिंदु बन जाता है। सिख धर्मग्रंथों का पाठ किया जाता है और गुरु रविदास को समर्पित मंदिरों में प्रार्थना की जाती है।
श्रद्धालु विभिन्न रस्मे पूरी करते हैं, उनके गीत और कविताएँ गाते हैं, और गंगा नदी में स्नान करते है। कुछ लोग तीर्थयात्रा करते हैं और रविदास को समर्पित मंदिर में जाते हैं और पूजा अर्चना करते हैं।
साथ ही कई स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किए जाते हैं। इनमें संत रविदास जी की जीवन गाथा सुनाई जाती है। लोग संत और महात्मा रविदास जी के पदचिन्हों पर चलने का लक्ष्य बनाते हैं
प्रमुख तीर्थ स्थल है संत गुरु रविदास का जन्म स्थान
संत गुरु रविदास का जन्म स्थान अब श्री गुरु रविदास जन्म स्थान के रूप में जाना जाता है और यह गुरु रविदास के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थान है.
संत रविदास के प्रसिद्ध दोहे
1. जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास
2 मन चंगा तो कठौती में गंगा
3. कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा
4 जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात
5. ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण
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संत रविदास की जयंती की वजह से पंजाब के चुनावों की तारीखें आगे बढ़ा दी गई है. भक्ति काल के इस महान संत कवि के अनुयायी हर साल धूमधाम से जयंती मनाते हैं.
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