बैसाखी- 2022, निबंध, कब और क्यों मनाया जाता है बैसाखी का त्योहार, इतिहास, उद्देश्य | Baisakhi- 2022 Objectives, Essay, Why and When Baisakhi Festival is celebrated? 

बैसाखी- 2022 –  बैसाखी को फसल का त्यौहार और नए बसंत का प्रतीक माना जाता है. बैसाखी से पकी हुई फसल को काटने की शुरुआत हो जाती है. देश के किसान इस त्योहार को बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं.

इस त्योहार को मौसम में बदलाव का प्रतीक भी कहा जाता है. कहा जाता है, कि बैसाखी के दिन से ही गर्मी शुरू हो जाती है. जिसके कारण रबी की फसल (Rabi crop) पक जाती है, इसलिए देश के किसान बैसाखी के त्योहार को बहुत ही उत्साह के साथ मनाते हैं.आज ही के दिन पंजाबी नए साल की शुरुआत भी होती है. 

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चार साहिबजादे

बैसाखी- 2022

बैसाखी के दिन ही सिखों के दसवें गुरू गुरु गोबिन्द सिंह ने सन् 1699 में पवित्र खालसा पंथ की स्थापना की थी।

बैसाखी 2022 की तिथि | Baisakhi 2022 Date

बैसाखी का त्यौहार : हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। ठीक इसी प्रकार से इस साल यानी साल 2022 में भी बैसाख 14 अप्रैल दिन गुरुवार को मनाई जाएगी.

बैसाखी- 2022

बैसाखी का ऐतहासिक महत्व 

सन् 1650 में पंजाब मुगल आतताइयों, अत्याचारियों और भ्रष्टाचारियों का दंश झेल रहा था, यहाँ समाज में लोगों के अधिकारों का हनन खुलेआम हो रहा था और न ही लोगों को कहीं न्याय की उम्मीद नज़र आ रही थी। ऐसी परिस्थितियों में गुरू गोबिन्द सिंह ने लोगों में अत्याचार के ख़िलाफ़ लड़ने, उनमें साहस भरने का बीडा़ उड़ाया।

बैसाखी का ऐतहासिक महत्व

उन्होंने आनंदपुर में सिखों का संगठन बनाने के लिए लोगों का आवाह्न किया। और इसी सभा में उन्होंने तलवार उठाकर लोगों से पूछा कि वे कौन बहादुर योद्धा हैं जो बुराई के ख़िलाफ शहीद हो जाने के लिए तैयार हैं। तब उस सभा में से पाँच योद्धा निकलकर सामने आए और यही पंच प्यारे कहलाए। यही से  खालसा पंथ का आरम्भ हुआ.

 खालसा पंथ

13 अप्रैल 1699 में बैसाखी के पर्व के दिन ही श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। आज के दिन ही गुरु गोबिंद सिंह ने सबसे पहले 5 प्यारों को अमृत पान करवाया था। साथ ही पांच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृत पान किया था। 

13 अप्रैल 1699 को श्री आनंदपुर साहिब में गुरु गोबिंद सिंह जी ने संगत बुलाई और संगत के बीच आकर म्यान से अपनी तलवार निकाली और सभी से सवाल किया कि आप सबमें कोई है जो इस समय मेरे लिए अपना सिर कलम करवाने की क्षमता रखता है। 

यह सुनते ही संगत में सन्नाटा छा गया लेकिन तभी पहला हाथ भाई दया सिंह जी का उठा। तब गुरु गोबिंद सिंह उन्हें तंबू के पीछे ले गए और थोड़ी देर बाद नंगी तलवार से ताजा खून की बूंदें के साथ वापस लौटें।

इससे बाद संगत से धर्म सिंह, हिम्मत सिंह, मोहकम सिंह और साहिब सिंह ने अपना सिर कटवाने के लिए गुरु जी के साथ तंबू के पीछे गए।थोड़ी देर के बाद इन्ही पांच लोगों के साथ गुरु जी भी ठीक उसी प्रकार की वेशभूषा में बाहर निकले। 

यह वही पांच नौजवान थे, जिन्होंने कुछ देर पहले ही गुरु गोबिंद सिंह के कहने पर अपने सिर की कुर्बानी दी थी। इसके बाद सिख धर्म के हर आयोजन की गतिविधियों की देख रेख इन्हीं पंच प्यारों के हाथों में सौंपी गई। सिख धर्म के हर पर्व में गुरु ग्रंथ साहिब की पालकी के आगे इन पंच प्यारों को जगह दी जाती है।

भारत में बैसाखी का त्यौहार कैसे मनाया जाता है

बैसाखी के त्यौहार को ज्यादातर गुरुद्वारों में मनाया जाता है। गुरुद्वारों को विभिन्न रंगों की रोशनी से सजाया जाता है, जबकि सिख “नगर कीर्तन” का आयोजन करते हैं – पांच खालसा के नेतृत्व में एक जुलूस। जुलूस को सिख ग्रंथों से भजन गाते लोगों द्वारा चिह्नित किया जाता है। कुछ बड़े जुलूस सम्मान के रूप में गुरु ग्रंथ साहिब की एक प्रति रखते हैं।

नगर कीर्तन

पंजाब की सच्ची संस्कृति को दर्शाने वाले कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। पारंपरिक लोक नृत्य या भांगड़ा, अनिवार्य रूप से एक फसल उत्सव नृत्य, लोग एक साथ मिलकर भांगड़ा और गिद्दा आदि नृत्य करते हैं। लोग स्थानीय मेलों में आते हैं जो पंजाबी संस्कृति का एक अभिन्न अंग हैं।

लोग दिन की शुरुआत करने से पहले पवित्र गंगा और अन्य पवित्र नदियों में डुबकी लगाते हैं और गुरूद्वारे जाकर मत्था टेकते हैं.गुरूद्वारे में इस दिन गुरु ग्रंथ साहिब जी के पवित्र स्थान को शुद्ध किया जाता है.इसके बाद पवित्र ग्रंथ की बाणी का श्रवण करते है.

पारंपरिक पोशाक पहनना, स्थानीय व्यंजनों का लुत्फ उठाना और दोस्तों और रिश्तेदारों के घर जाना काफी आम है। लोग एक साथ मिलकर भांगड़ा और गिद्दा आदि नृत्य करते हैं।  नया उद्योग शुरू करने के लिए भी बैसाखी का दिन शुभ माना जाता है।

लोग स्वयंसेवकों द्वारा परोसे जाने वाले लंगर का आनंद लेते हैं। यह त्योहार स्कूलों, कॉलेजों और खेतों में भी मनाया जाता है। इस दिन स्कूलों द्वारा कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते  है।  गुरुद्वारा बैसाखी की वास्तविक सुंदरता को धारण करने वाले सर्वोत्तम स्थान हैं। वे पूरी तरह से सजाए जाते है.

लंगर

बैसाखी मनाने के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान

अमृतसर-

यदि आप बैसाखी मनाने के लिए सबसे अच्छी जगह की तलाश में हैं, तो अमृतसर शहर की यात्रा करने पर विचार करें। वास्तव में, यह हर साल हजारों सिखों द्वारा दौरा किया जाता है।

baiskahi in amritsar

दिल्ली-

भारत की राजधानी दिल्ली, इस दिन को मनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करती है। इसमें देश के सभी हिस्सों से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। लोग विशेष प्रार्थना करने और त्योहार की शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करने के लिए गुरुद्वारों में इकट्ठा होते हैं।

चंडीगढ़

 चंडीगढ़ इस त्योहार के दौरान सबसे अधिक देखी जाने वाली जगहों में से एक है। पर्यटक शहर के गुरुद्वारों में जाते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं। हरियाणा की तरह ही वे शाम के समय गायन और नृत्य संगीत का आनंद ले सकते हैं।

जालंधर:

जालंधर शहर बैसाखी को आकर्षक रूप से मनाता है। मुख्य उत्सवों में नृत्य, गायन आदि शामिल हैं। पुरुष और महिला दोनों लोक नृत्य करते हैं। 


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Mrs. Shakuntla

MrsShakuntla M.A.(English) B.Ed, Diploma in Fabric Painting, Hotel Management. संस्था Art of Living के सत्संग कार्यकर्मो में भजन गाती हूँ। शिक्षा के क्षेत्र में 20 वर्ष के तजुर्बे व् ज्ञान से माता पिता, बच्चों की समस्यायों को हल करने में समाज को अपना योगदान दे संकू इसलिए यह वेबसाइट बनाई है।

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