Table of Contents
गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन परिचय , गुरु गोबिंद सिंह जी जयंती 2022, गुरु गोबिंद सिंह जी गुरुपर्व 2022, इतिहास ,कहानी ,निबंध ,धर्म ,निधन ( Guru Gobind Singh Ji Biography In Hindi, history ,essay , Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022, family, history of Guru Gobind Singh Ji in hindi, story ,Death )
गुरुपर्व: गुरपुरब शब्द दो शब्दों ‘गुरु’ + ‘पूरब’ (हिंदी में पर्व से व्युत्पन्न) से बना है, इसलिए गुरुपर्व शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘गुरु से जुड़ा त्योहार / दिन’ है। सिख गुरुओं से जुड़े सिख त्योहारों या महत्वपूर्ण दिनों को ‘गुरुपर्व’ कहा जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह जी सिखो के दसवें सिख गुरु होने के साथ साथ एक योद्धा, कवि और दार्शनिक थे । ये सिखो के नौवे गुरु तेग बहादुर के पुत्र थे जिनको सम्राट औरंगजेब द्वारा शहीद कर दिया गया था। गुरु गोबिंद सिंह जी की 355 वीं जन्म वर्षगांठ ( जयंती ) 9 जनवरी 2022 के दिन मनाई जा रही है. Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022, 9 जनवरी 2022 को मनाया जा रहा है।
अपने पिता की शहीदी के बाद मात्र नौ साल में इन्हे सिख धर्म का दसवां एवं अंतिम गुरु बनाया गया था। 13 अप्रैल 1699 वैसाखी वाले दिन , गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की – “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह”।

गुरु गोबिंद सिंह जी के चार पुत्र थे जिनमे से दो की शहीदी युद्द में हो गई थी और बाकी दो पुत्रो को मुग़ल सेना द्वारा शहीद कर दिया गया था। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवनकाल में गरीबो की रक्षा एवं पाप का खात्मा करने के लिए 14 युद्द लड़े थे। जिसमे से 13 युद्द मुग़ल साम्राज्य के खिलाफ लड़े थे।
आज हम सिखो के सिक्खो के दसवें गुरु : गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवनकाल की कहानियाँ ,उनकी शिक्षा ,युद्द एवं कुछ महत्वपूर्व तत्वो की जानकारी जानेंगे। Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022, 9 जनवरी 2022 को मनाया जा रहा है।
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022
संक्ष्पित
नाम (Name ) | गुरु गोबिंद सिंह जी |
असली नाम (Real Name ) | गोबिंद राय |
निक नेम (Nick Name ) | खालसा नानक , हिंद का पीर या भारत का संत |
प्रसिद्द (Famous for ) | दसवें सिख गुरु, सिख खालसा सेना के संस्थापक एवं प्रथम सेनापति |
पदवी (Title ) | सिखों के दसवें गुरु |
जन्म तारीख (Date of birth) | 5 जनवरी, 1666 |
जन्म स्थान (Place of born ) | पटना साहिब, पटना ,भारत |
मृत्यु तिथि (Date of Death ) | 7 अक्टूबर 1708 |
मृत्यु का स्थान (Place of Death) | हजूर साहिब, नांदेड़, भारत |
मृत्यु का कारण (Reason of Death) | हत्या |
उम्र( Age) | 41 साल (मृत्यु के समय ) |
धर्म (Religion) | सिख |
जाति (Caste ) | सोढ़ी खत्री |
नागरिकता(Nationality) | भारतीय |
पूर्वाधिकारी (Predecessor) | गुरु तेग बहादुर |
उत्तराधिकारी (Successor) | गुरु ग्रंथ साहिब |
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | शादीशुदा |
विवाह की तारीख (Date Of Marriage ) | पहला विवाह : 21 जून, 1677 (10 साल की उम्र में ) दूसरा विवाह : 4 अप्रैल, 1684 (17 साल की उम्र में ) तीसरा विवाह :15 अप्रैल,1700 (33 साल की उम्र में ) |
जन्म व बचपन
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 5 जनवरी, 1666 को पटना साहिब, बिहार, भारत में हुआ था। उनका जन्म सोढ़ी खत्री के परिवार में हुआ था और उनके पिता गुरु तेग बहादुर, नौवें सिख गुरु थे और उनकी माता का नाम माता गुजरी था।

1670 में गुरु गोबिंद सिंह जी अपने परिवार के साथ पंजाब लौट आए और बाद में अपने परिवार के साथ मार्च 1672 में शिवानी पहाड़ियों के पास चक नानकी में स्थानांतरित हो गए जहाँ उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की।
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022
पिता की शहीदी
1675 में, कश्मीर पंडितों ने गुरु तेग बहादुर को मुगल सम्राट औरंगजेब के अधीन गवर्नर इफ्तिकार खान के उत्पीड़न से बचाने के लिए कहा।

तेग बहादुर ने पंडितों की रक्षा करना स्वीकार किया इसलिए उन्होंने औरंगजेब की क्रूरता के खिलाफ विद्रोह किया।
औरंगजेब ने उन्हें दिल्ली बुलाया और आगमन पर, तेग बहादुर को इस्लाम में परिवर्तित होने के लिए कहा गया।
गुरु तेग बहादुर ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और उन्हें उनके साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और 11 नवंबर, 1675 को दिल्ली में सार्वजनिक रूप से उनका सिर कलम कर दिया गया।

उनके पिता की अचानक मृत्यु ने ही गुरु गोबिंद सिंह जी को मजबूत बना दिया क्योंकि वे और सिख समुदाय औरंगजेब द्वारा दिखाई गई क्रूरता के खिलाफ लड़ने के लिए दृढ़ थे। यह लड़ाई उनके बुनियादी मानवाधिकारों और सिख समुदाय के गौरव की रक्षा के लिए की गई थी।
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022
गुरुगद्दी
उनके पिता की मृत्यु ने सिखों को गुरु गोबिंद सिंह जी को 29 मार्च, 1676 को वैसाखी के दिन सिखों का दसवां गुरु बना दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी केवल नौ वर्ष के थे जब उन्होंने सिख गुरु के रूप में अपने पिता का पद ग्रहण किया। दुनिया को कम ही पता था कि नौ साल का यह बच्चा जिसकी आंखों में दृढ निश्चय है, पूरी दुनिया को बदलने वाला है।
1685 तक गुरु गोबिंद सिंह जी पोंटा में रहे जहां उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और घुड़सवारी, तीरंदाजी और अन्य मार्शल आर्ट जैसे युद्ध के दौरान खुद को बचाने के लिए आवश्यक बुनियादी कौशल भी सीख रहे थे।
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022
परिवार

पिता का नाम (Father) | गुरु तेग बहादुर जी |
माँ का नाम (Mother ) | माता गुजरी चंद सुभीखी |
पत्नी का नाम (Wife ) | पहली पत्नी : माता जीतो दूसरी पत्नी : माता सुंदरी तीसरी पत्नी : माता साहिब देवां |
बच्चो के नाम (Children ) | जुझार सिंह ,जोरावर सिंह एवं फतेह सिंह (पहली पत्नी से ) अजीत सिंह (दूसरी पत्नी से ) |
गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवनकाल में तीन शादियाँ की थी जिसमे पहली शादी 10 साल की उम्र में 21 जून 1677 को आनंदपुर से 10 किमी उत्तर में बसंतगढ़ में माता जीतो से हुई। शादी के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी एवं माता जीतो के तीन पुत्र हुए जिनके नाम जुझार सिंह ,जोरावर सिंह एवं फतेह सिंह था
दूसरी शादी 17 साल की उम्र में 4 अप्रैल, 1684 को आनंदपुर में माता सुंदरी से हुई । शादी के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी माता सुंदरी के यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम अजीत सिंह था।
तीसरी शादी 33 साल की उम्र में 15 अप्रैल 1700 को आनंदपुर में माता साहिब देवन से शादी की । उनकी कोई संतान नहीं थी, लेकिन सिख धर्म में उनकी प्रभावशाली भूमिका थी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने उन्हें खालसा की माता के रूप में घोषित किया ।
पढ़े :
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022
खालसा पंथ की स्थापना की कहानी
30 मार्च 1699 को, गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने अनुयायियों को आनंदपुर में अपने घर पर इकट्ठा किया।
गुरु ने अपनी तलवार खींची और गरजते हुए स्वर में कहा, “मुझे एक सिर चाहिए, क्या कोई है जो मुझे चढ़ा सकता है?”

गुरु गोबिंद सिंह जी की इस बात ने सभा में कुछ डर का माहौल पैदा कर दिया था और लोग दंग रह गए। गुरु ने दूसरी पुकार की। कोई सामने नहीं आया।
अभी और सन्नाटा था। तीसरे आह्वान पर लाहौर के एक खत्री दया राम ने कहा, “हे सच्चे राजा, मेरा सिर आपकी सेवा में है।”
गुरु जी ने दया राम का हाथ पकड़ लिया और उन्हें एक तंबू के अंदर ले गए। एक झटका और गड़गड़ाहट सुनाई दी। तब गुरु जी अपनी तलवार से खून टपका कर बाहर आये और बोले,
“मुझे एक और सिर चाहिए, क्या कोई है जो चढ़ा सकता है?”
जब गुरु जी ने तीन बार फिर से कहा तो धर्म दास जो दिल्ली का रहने वाला एक जाट था वह आगे आया और कहा, “हे सच्चे राजा! मेरा सिर आपके निपटान में है।”
गुरु जी धर्म दास को तम्बू के अंदर ले गए, फिर से एक झटका और गड़गड़ाहट सुनाई दी, और वह खून से लथपथ अपनी तलवार के साथ बाहर आये और दोहराया,
“मुझे एक और सिर चाहिए, क्या कोई प्रिय सिख है जो इसे चढ़ा सकता है?”
गुरु जी के दो बार ऐसा करने पर और तीसरी बार फिर से वही काम दोहराये जाने पर सभा में शामिल लोग तरह तरह की बातें करने लगे की गुरू जी अपना आपा खो चुके है और कुछ लोग उनकी शिकायत करने उनकी माता के पास भी चले गए।
तीसरी बार अपना बलिदान देने के लिए द्वारका के निवासी एवं एक दर्जी मोहकम चंद ने खुद को एक बलिदान के रूप में पेश किया। गुरु जी उसे तंबू के अंदर ले गए और उसी प्रक्रिया से गुजरे।
जब गुरु जी वापस से बाहर आये और उन्होंने जैसे ही चौथे सिर के लिए लोगो को कहा तो वह खड़े जायदातर सिखो को लगने लगा कि गुरु आज उन सभी को मार डालेंगे ।
चौथी बार गुरु जी के द्वारा फिर से बलिदान मांगे जानें की बात सुनकर सभा में मौजूद कुछ लोग भाग खड़े हुए और दूसरों ने अविश्वास में अपना सिर नीचे कर लिया।
गुरु जी के कहे अनुसार चौथे सिर के बलिदान के लिए जगन नाथ पुरी के रसोइया हिम्मत चंद ने खुद को चौथे बलिदान के रूप में पेश किया।
फिर गुरु जी ने पाँचवाँ सिर के लिए आखिरी पुकार की। साहिब चंद , बीदर (मध्य भारत में) का एक नाई आगे आया और गुरु उसे तंबू के अंदर ले गए। एक झटका और गड़गड़ाहट सुनाई दी।
अंत में, गुरु जी उन सभी पाँच स्वयंसेवकों के साथ तम्बू से निकले जिनका सर उन्होंने बलिदान के लिए माँगा था और बार बार अपने तम्बू से बाहर आके यह दिखाया था की उनकी गर्दन काट दी गई है।
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022
दरअसल गुरु जी ने पांच बार जो गर्दन काटी थी वो पांच बकरियाँ थी जिनके सिर कटने की आवाज से ऐसा महसूस हो रहा था की गुरु सच में अपने सेवको की गर्दन काट रहे है । अंत में इन पांच सिख स्वयंसेवकों को गुरु जी ने पंज प्यारे या ‘पांच प्यारे’ के रूप में नामित किया था।
और इस तरह 30 मार्च 1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022
गुरु गोबिंद सिंह जी के पंज प्यारो के नाम
क्र.सः | पंज प्यारो के नाम | खालसा बनने के बाद नाम |
1 | दया राम | भाई दया सिंह |
2 | धर्म दास | भाई धरम सिंह |
3 | हिम्मत राय | भाई हिम्मत सिंह |
4 | मोहकम चंद | भाई मोहकम सिंह |
5 | साहिब चंद | भाई साहिब सिंह |
गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह बनना
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा की स्थापना करने से पहले लोगों के विश्वास की परीक्षा लेने के लिए ऐसा किया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने जो स्वयंसेवकों के लिए अमृत (अमृत) तैयार किया था उस अमृत को ”पंज प्याला ”भी कहा जाता है।
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022
अमृत प्राप्त करने के बाद सभी पांचो खालसों को गुरु गोबिंद सिंह जी ने एक उपनाम ” सिंह ” दिया जिसका मतलब था अब आगे चलकर सभी पांचो खालसे अपने नाम के आगे ”सिंह” शब्द लगाएंगे जिसका मतलब होता था शेर।

उन पांच खालसा सेवको ने गुरु गोबिंद जी से छठा खालसा बनने के लिए कहा जिसका मतलब था शेर की तरह दिखने वाले गुरु गोविन्द राय को भी अपने नाम के साथ सिंह शब्द जोड़ना था और इस तरह उनका नाम गुरु गोबिंद राय से बदलकर ”गुरु गोबिंद सिंह ” कर दिया गया और गुरु गोबिंद जी सिंह उपनाम के साथ सिखो के छटे खालसे के रूप में पहचाने जाने लगे।
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022
पांच कक्कार
गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को हर समय पांच वस्तुओं को पहनने की आज्ञा दी :
क्र.सः | पांच ”के ”के नाम | अर्थ |
1 | केश (Kesh) | बिना कटे बाल |
2 | कंघा (Kangha ) | लकड़ी की कंघी |
3 | कड़ा (Kara ) | कलाई पर पहना जाने वाला लोहे या स्टील का कंगन |
4 | कृपाण (Krapal ) | तलवार या खंजर |
5 | कछेरा (Kachera ) | कच्छा |
गुरु गोबिन्द सिंह जी की रचनायें
- जाप साहिब
- अकाल उस्तत
- बचित्र नाटक
- चण्डी चरित्र
- शास्त्र नाम माला
- अथ पख्याँ चरित्र लिख्यते
- ज़फ़रनामा
- खालसा महिमा
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022
गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा लड़े गए युद्द
मुगल साम्राज्य और शिवालिक पहाड़ियों के राजाओं के खिलाफ 13 लड़ाई लड़ी ।

- भंगानी की लड़ाई (1688)
- नादौन की लड़ाई (1691)
- गुलेर की लड़ाई (1696)
- आनंदपुर की लड़ाई (1700)
- आनंदपुर (1701) की लड़ाई
- निर्मोहगढ़ (1702) की लड़ाई
- बसोली की लड़ाई (1702)
- चमकौर का प्रथम युद्ध (1702)
- आनंदपुर की पहली लड़ाई (1704)
- आनंदपुर की दूसरी लड़ाई
- सरसा की लड़ाई (1704)
- चमकौर की लड़ाई (1704)
- मुक्तसर की लड़ाई (1705)
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022
ज़फरनामा
मुगल सेना और मुक्तसर की लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी के सभी बच्चों के मारे जाने के बाद, गुरु ने औरंगजेब को फारसी में एक उद्दंड पत्र लिखा, जिसका शीर्षक था जफरनामा (शाब्दिक रूप से, “जीत का पत्र”), सिखों के साथ किए गए कुकर्मों की याद दिलाता है।

गुरु का पत्र औरंगजेब के लिए कठोर होने के साथ-साथ सुलह करने वाला भी था। इस पत्र में भविष्यवाणी की गई थी कि मुगल साम्राज्य जल्द ही समाप्त हो जाएगा, क्योंकि यह उत्पीड़न, झूठ और अनैतिकता से भरा है।
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022
मृत्यु
नवाब वजीत खाँ ने दो पठान हत्यारों जमशेद खान और वसील बेग को गुरु के विश्राम स्थल नांदेड़ में गुरु जी पर हमला करने के लिए भेजा।
उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह जी को उनकी नींद में चाकू मार दिया। गुरु गोबिंद जी ने हमलावर जमशेद को अपनी तलवार से मार डाला, जबकि अन्य सिख भाइयों ने बेग को मार डाला।
इन पठानों ने गुरुजी पर धोखे से घातक वार किया, जिससे 7 अक्टूबर 1708 में गुरुजी (गुरु गोबिन्द सिंह जी) नांदेड साहिब में दिव्य ज्योति में लीन हो गए और इस दुनिया को छोड़ कर हमेशा हमेशा के लिए चले गए ।

अपने अंत समय में गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखो को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा व खुद भी माथा टेका।
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022
गुरु गोबिंद सिंह जी के मुख्य उपदेश
गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को पाँच मंत्र दिये थे, उन्होंने कहा था कि सिख होगा उसके लिए पांच ककार केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा अनिवार्य होगा ये पहनकर ही खालसा वेश पूर्ण माना जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने समाज में धर्म और सत्य खालसा की स्थापना की। तथा सिख की रक्षा के लिए कृपाण रखने की सलाह दी।
यह गुरु गोबिंद सिंह जी थे जिन्होंने खालसा वाणी “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की जीत” की घोषणा की थी। सिख समुदाय के लोग आज भी इस आवाज का प्रचार करते हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने गुरु की परम्परा को खत्म कर दिया और सभी सिखों को गुरु ग्रन्थ साहब को अपना गुरु मानने को कहा, आज भी लोग गुरु ग्रंथ साहब को अपना मार्ग दर्शक मानते है। इस प्रकार गुरु गोबिंद सिंह जी अन्तिम सिख गुरु थे।
गुरु गोबिंद सिंह जी बहादुरी की मिसाल थे. उनके लिए कहा जाता है “सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ”. उन्होंने सिखों को निडर रहने का संदेश दिया।
अगर आप केवल अपने भविष्य के ही विषय में सोचते रहें तो
आप अपने वर्तमान को भी खो देंगे.
मैं उन ही लोगों को पसंद करता हूँ
जो हमेशा सच्चाई के राह पर चलते हैं.
जब आप अपने अन्दर बैठे अहंकार को मिटा देंगे
तभी आपको वास्तविक शांति की प्राप्त होगी.
भगवान् ने हम सभी को जन्म दिया है
ताकि हम इस संसार में अच्छे कार्य करें और समाज में फैली बुराई को दूर करें.
इंसान से प्रेम करना ही,
ईश्वर की सच्ची आस्था और भक्ति है.
अपने द्वारा किये गए अच्छे कर्मों से ही आप
ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं.
और अच्छे कर्म करने वालों की ईश्वर सदैव सहायता करता है.
मुझको सदा उसका सेवक ही मानो.
और इसमें किसी भी प्रकार का संदेह मत रखो.
जब इंसान के पास सभी तरीके विफल हो जाएं,
तब ही हाथ में तलवार उठाना सही है.
निर्बल पर कभी अपनी तलवार चलाने के लिए उतावले मत होईये,
वरना विधाता आप का ही खून बहायेगा.
हमेशा ही उसने अपने अनुयायियों को सुख दिया है
और हर समय उनकी सहायता की है.
हे प्रभु मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करे,
कि मैं कभी अच्छे कर्मों को करने में तनिक भी संकोच ना करूँ.
इंसान को सबसे वैभवशाली सुख और स्थायी शांति तब ही प्राप्त होती है,
जब कोई अपने भीतर बैठे स्वार्थ को पूरी तरह से समाप्त कर देता है.
हर कोई उस सच्चे गुरु की प्रशंसा और जयजयकार करे,
जो हमें भगवान की भक्ति के खजाने तक ले गया है.
भगवान के नाम के अलावा आपका कोई भी सच्चा मित्र नहीं है,
ईश्वर के सभी अनुयायी इसी का चिंतन करते हैं और इसी को देखते हैं.
गुरु के बिना किसी को भी
भगवान का नाम नहीं मिला है.
हमेशा आप अपनी कमाई का दसवां भाग दान में दे दें.
FAQ
सिखों के दसवें गुरु कौन थे ?
गुरु गोबिंद सिंह जी
गुरु गोबिंद सिंह जी की माता का नाम क्या था ?
गुरु गोबिंद सिंह जी की माता का नाम माता गुजरी था।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने कौन सी संस्था स्थापित की ?
सन 1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ (पन्थ) की स्थापना की जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह जी की मृत्यु कहाँ हुई ?
गुरु गोबिंद सिंह जी की मृत्यु हजूर साहिब, नांदेड़,महाराष्ट्र , भारत में हुई थी।
गुरु गोबिंद सिंह जी के कितने बेटे थे ?
गुरु गोबिंद सिंह जी के चार बेटे थे जिनके नाम जुझार सिंह ,जोरावर सिंह एवं फतेह सिंह, अजीत सिंह
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म कौन से परिवार में हुआ ?
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 5 जनवरी, 1666 को पटना साहिब, बिहार, भारत में हुआ था। उनका जन्म सोढ़ी खत्री के परिवार में हुआ था और उनके पिता गुरु तेग बहादुर, नौवें सिख गुरु थे और उनकी माता का नाम माता गुजरी था।
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022 कब है?
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022, 9 जनवरी 2022
इसे भी पढ़िए :
बच्चों को अच्छी आदतें कैसे सिखाएं
एक नज़र में आज के मुख्य समाचार | Today’s Headlines At A Glance |
माता-पिता के जानने योग्य जरूरी बातें
बच्चों को मोबाइल / टीवी दिखाए बिना खाना कैसे खिलाये?
Guru Gobind Singh Ji Gurpurab 2022
2-5 साल के बच्चें को Smartly Handle कैसे करें
जीवन में नैतिक मूल्य का महत्व Importance of Moral Values
आध्यात्मिक कहानियाँ (Spiritual Stories)
प्रेरणादायक कहानी (Insipirational Stories)
दिवाली की सम्पूर्ण जानकारी | All Detail About Diwali | दीपावली 2021 : 4 नवंबर (वीरवार)
Navratri 9 Guided Meditation by Gurudev Sri Sri Ravishankar